इस तरह से मराठों ने रीवा रियासत पर किया दूसरा हमला

रीवा का इतिहास : इस तरह से मराठा साम्राज्य रीवा रियासत पर लिया था दूसरा हमला

इस तरह से मराठों ने रीवा रियासत पर किया दूसरा हमला
X

रीवा का इतिहास : मराठों के सन् 1796 के पहले हमले में चोरहटा के चेंदुआ नाले के किनारे एक खेत पर घनघोर युद्ध में अलीबहादुर का सेना नायक यशवन्त राव मारा गया। यह स्थान अब "नैकहाई" (ननकहाई) के नाम से जाना जाता है, जहाँ वीर शहीदों की अनेक छतरियाँ स्मारक के रूप में बनी हुई हैं, जो जीर्ण-शीर्ण हालत में है।

नैकहाई के इस युद्ध में पराजय के बाद मराठा अलीबहादुर बहुत क्रोधित हुआ और प्रतिज्ञा की कि जब तक रीवा राजा को अपने अधीन कर नायक का बदला नहीं लेगा, तब तक सिर पर पगड़ी धारण नहीं करेगा। नैकहाई की लड़ाई के दो वर्ष बाद सन् 1798 में अली बहादुर ने पुनः रीवा पर आक्रमण करने के लिये हिम्मत बहादुर गोसाई के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी जिसमें अंग्रेज मिस्टर पिल की प्रशिक्षित बटालियन भी थी।

इस बार मराठों का यह आक्रमण दक्षिण की ओर से हुआ जो रीवा से 25 किलोमीटर दूर का क्षेत्र ताला-मुकुन्दपुर का है। हिम्मत बहादुर राज्य में घुसकर लूटमार की और बहुत से मवेशियों को पकड़कर अपने सैनिकों को वेतन के तौर पर बाँट दिया। सन् 1759 ई. में रीवा महाराजा अजीत सिंह के आश्रय में मुकुन्दपुर की गढ़ी पर दिल्ली के बादशाह शाहआलम के पुत्र अकबर द्वितीय का जन्म हुआ था। मुकुन्दपुर में गढ़ी का निर्माण राजा अमर सिंह ने 1624-30 में करया था तथा उसका उपयोग उपराजधानी के रूप में होने लगा।

इस रियासत को रीवा-मुकुन्दपुर के नाम से खरीता पत्रों में उल्लेख होता था । उन पत्रों की नकल मेरी डायरी में नोट है जिसे रीवा के इतिहासकार अख्तर हुसैन निजामी ने लिखाया था। एक साक्षात्कार में रीवा के इतिहासकार प्रो. राधेशरण ने भी बताया था कि मराठे पहली पराजय झेलने के बाद दूसरी बार बदला लेने के लिए मुकुन्दपुर को घेरा।

इस बार रीवा राज्य का खजाना एकदम खाली था तथा नैकहाई के युद्ध में भाग लेने वाले जैसे वीर योद्धा भी नहीं थे, क्योंकि अधिकांश बघेल- कर्चुली सरदार वीरगति पा गये थे। अभी नैकहाई युद्ध की क्षतिपूर्ति भी नहीं हो पाई थी, कि रीवा राज्य पर पुनः संकट के बादल घिर गये। ऐसे भी विकट स्थिति में अजय सिंह के पास संधि करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचा। आक्रमणकारी अली बहादुर ने महाराजा के पास सूचना भेजी की 12 लाख रूपये वार्षिक चौथ देना स्वीकार करो या फिर युद्ध के लिये तैयार हो जाओ।

उस समय अभी भी रीवा राज्य के पास दो बुद्धिमान और बहादुर कल्चुरी सरदार बचे थे। पहले हैं-कलंदर सिंह एवं दूसरे मल्लशाह। मल्लशाह- बुन्देलहाई लड़ाई में शहीद होने वाले हिम्मतराय के नाती थे। जब नैकहाई की लड़ाई हो रही थी तो ये मुकुन्दपुर के 12 गाँवों की अगहनी लगान लेकर दिल्ली गये हुये थे। कहा जाता है कि ये 500 घोड़ों के सरदार थे।

ये मुकुन्दपुर मौजा की अगहनी- बैसाखी लगान लेकर दिल्ली बादशाह के पास जाया करते थे। राजकीय सेवा के बदले इन्हें मुकुन्दपुर से 12 किलोमीटर दूर ताला ग्राम की जागीर प्रदान की गई थी। उस समय इनकी बहुत बड़ी साख थी। उस समय इनके मेछा के बाल गहन रखे जाते थे। कलंदर सिंह कल्चुरी नैकहाई युद्ध में कल्चुरी सेना का नेतृत्व कर विजय दिलाई थी। ये वाकपटु, हाजिर जवाबी और बुद्धिमानी से बात कर सामने वाले को संतुष्ट करने के कला में माहिर थे। उस समय ये रीवा राज्य की मुख्य प्रवक्ता । अजीत सिंह ने संधि स्वीकार कर कलंदर सिंह को अली बाहदुर से बात करने के लिये भेजा।

कलंदर सिंह तमाम राज्य की माली हालत और मजबूरी को रखते हुए अली बहादुर को बड़े प्रेम से समझाना शुरू किया। उनकी बातों के प्रभाव में आकर अली बहादुर ने खेराज (चौथ) लेना तो माफ कर दिया किन्तु हर्जाना लेने पर अड़ा रहा। अन्त में बात होते-होते सैनिक अभियान में लगे खर्च को अदा करने की सहमति बनी। कितनी राशि अदा करने की सहमति बनी इस पर विवाद है। कही एक लाख तो कहीं दो लाख तो कहीं तीन लाख का उल्लेख है।

रीवा के खजाने में रूपये न रहने के कारण कलंदर सिंह ने अली बहादुर से कुछ समय के मोहलत की प्रार्थना की। अली बहादुर ने इसे स्वीकार कर लिया लेकिन हर्जाना जमा होने तक बंधक के तौर पर कलंदर सिंह को अपने साथ ले गया। बाद में राजा अजीत सिंह ने गहरवार राज माण्डा (उत्तरप्रदेश) को सितलहा (त्योंथर) का परगना गहन गच्छ कर हर्जाना की राशि अली बहादुर के पास भेजकर कलंदर सिंह को मुक्त कराया।

Tags:
Next Story
Share it