Kisan News: एमपी में किसानों को हो रहा बंपर मुनाफा, 30 हजार रुपए प्रति क्विंटल बिक रही गेहूं की यह किस्म
मध्य प्रदेश के किसान सोना मोती गेहूं बेचकर कर रहे मोटी कमाई, 30 हजार रुपए से अधिक कीमत में बिक रहा यह गेहूं
Kisan News: मध्य प्रदेश में किसानों को सोना मोती गेहूं (Sona Moti Gehun) की किस्म बेचकर बंपर मुनाफा हो रहा है किसानों को प्रति क्विंटल 30 हजार रुपए तक फायदा मिल रहा है. मोती जैसे गोल आकार और चमकदार दाने वाला यह गेहूं हड़प्पा कालीन है. इसकी खास बात यह है कि इस फसल को तैयार करने के लिए किसी भी प्रकार के रसायन और यूरिया डीएपी इत्यादि का उपयोग नहीं किया जाता इसमें सिर्फ गोबर की जैविक खाद ही दी जाती है.
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मध्य प्रदेश के सागर में यह गेहूं 9 से लेकर 15 हजार रुपए तक बिक रहा है जिसे किसान बाहर 15 से 30 या 35 हजार रुपए (Sona Moti Gehun Ka Rate) तक में भी बेच रहे हैं इससे किसानों का दो गुना मुनाफा हो रहा है. इस गेहूं को तैयार करने में सामान्य गेहूं की फसल से थोड़ा अत्यधिक मेहनत है लेकिन जब फसल पूरी तरह से पैक कर तैयार हो जाती है तो इसमें किसानों को 2 से 3 गुना तक अत्यधिक मुनाफा मिलता है.
पंजाब, महाराष्ट्र और बिहार के साथ ही तीन साल पहले सागर में इस गेहूं के उत्पादन की शुरुआत विचार समिति के अध्यक्ष कपिल मलैया ने बताया कि वे गेहूं की यह किस्म श्रीश्री रविशंकर की प्रेरणा से पंजाब से लेकर आए थे. उन्होंने मनेशिया गांव में 20 एकड़ खेत में गेहूं की खेती शुरू की प्रति एकड़ 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार हुई इस बार 38 एकड़ में खेती की है.
इस वजह से महंगा बिकता है सोना मोती गेहूं (Sona Moti Gehun Health Benefit)
हड़प्पा कालीन सभ्यता के समय का यह मोती गेहूं (Sona Moti Gehun Health Benefit) के कई फायदे हैं इसमें 267 प्रतिशत अधिक खनिज, 40% अधिक प्रोटीन, तीन गुना फोलिक एसिड, चीनी की मात्रा कम और डायबिटीज़ एवं हृदय रोग में बेहद फायदेमंद होता है इसी वजह से इस गेहूं की डिमांड पूरे देश भर में है.
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42 हजार तक मुनाफा
सामान्य गेहूं की पैदावार प्रति एकड़ 20 क्विंटल तक होती है. इससे किसानों को प्रति एकड़ 48 हजार रुपए मिलते हैं. सोना मोती गेहूं 10 क्विंटल प्रति एकड़ होता है, इससे 90 हजार रुपए प्रति एकड़ तक मिलते हैं, प्रति क्विंटल 42 हजार ज्यादा मुनाफा होता है.
इस गेहूं के उत्पादन की शुरुआत में सामान्य खेती से दोगुना खर्च आता है. लेकिन गेहूं की कीमत ज्यादा है, इसलिए लागत की भरपाई हो जाती है, जैविक खाद के कारण साल-दर-साल लागत घटती जाती है.
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