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Sambhal Controversy: संभल के चंदौसी में खुदाई के दौरान मिली बावड़ी, रानी सुरेंद्र बाला की पोती क्षिप्रा रानी ने किया बड़ा खुलासा

Sambhal Controversy:संभल के चंदौसी में खुदाई के दौरान प्राचीन बावड़ी और सुरंग मिली है. अधिकारियों के अनुसार ये बावड़ी तकरीबन 250 फ़ीट तक गहरी हो सकती है. कहा जा रहा है की ये प्राचीन बावड़ी रानी सुरेंद्र बाला की है। इसी बीच अब रानी सुरेंद्र बाला (Rani Surendra Bala) की पोती क्षिप्रा रानी ने इसको लेकर कई बड़े खुलासे किए हैं.

Sambhal Controversy: संभल में 46 साल से बंद मंदिर मिलने के बाद स्थानीय प्रशासन को एक एक शिकायती पत्र मिलता है, जिसमे ये दावा किया गया था कि चंदौसी के लक्ष्मणगंज क्षेत्र में पहले बिलारी की रानी की ऐतिहासिक बावड़ी मौजूद थी, जिसे अतिक्रमण कर के दबा दिया गया.

इस शिकायत के बाद जिलाधिकारी ने जांच के आदेश दिए,  इसके बाद शनिवार को राजस्व विभाग की टीम नायब तहसीलदार धीरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में नक्शे के साथ मौके पर पहुंची, जैसे ही प्रशासन ने महोल्ला बाबरी बस्ती के बीच में बुलडोजर से खुदाई शुरू की तो देखते ही देखते वहां प्राचीन इमारत दिखनी शुरू हो गई.

अभी तक खुदाई में 2 मंजिला इमारत दिखाई दी है. बता दें कि पुराने दस्तावेजों में इस जगह पर कुआ और तालाब भी दर्ज है. खुदाई के दौरान अभी तक बावड़ी के 8 कमरे, दो कुएं और 2 सीढ़िया मिली हैं. इसके साथ ही यहाँ पर एक सुरंग भी मिली है.

रानी सुरेंद्र बाला की है बावड़ी

जिस स्थान पर ये बावड़ी मिली है ये इलाका 1857 से पहले हिन्दू बाहुल्य था और ये बावड़ी रानी सुरेंद्र बाला (Rani Surendra Bala) की है. बावड़ी मिलने के बाद रानी सुरेंद्र बाला की पोती क्षिप्रा रानी ने मीडिया के सामने आ कर इस बावड़ी और सुरंग सहित पूरे इलाके को लेकर कई चौकाने वाले खुलासे किए हैं.

खुलासो के साथ उन्होंने इस संपत्ति के मालिकों यानी अपने पूर्वजो के बारे में भी बताया। ये जो तस्वीर आप देख रहें है ये रानी सुरेंद्र बाला की है और उनके बगल में जो फोटो रखी है वो राजा जगदीश कुंवर की है.

क्षिप्रा रानी रानी सुरेंद्र बाला (Rani Surendra Bala) की सबसे छोटी पोती हैं. पहले राजा का सहसपुर में उनका बंगला था. आज जो बावड़ी मिली है, वो राज परिवार के गेस्ट हाउस की तरह थी. लेकिन रानी सुरेंद्र बाला को ये जगह काफी पसंद थी इसलिए रानी यहां खुद रहती थीं. रानी की पोती शिप्रा के मुताबिक, पहले बावड़ी के आस-पास खेत थे. ये सभी खेत उनके परिवार के थे. जब वो लोग यहाँ आते थे तो रात को वो इसी बावड़ी में ही रुकते थे . खुद रानी भी इसी कोठी में रहती थीं.

क्षिप्रा रानी ने बताया कि उनके पिता ने ये संपत्ति बेच दी थी. जिस शख्स को संपत्ति बेची गई, उसने भी कुछ समय बाद ये संपत्ति अन्य लोगों को बेच दी . पहले यहां सारे हिंदू रहते थे. हालाँकि अब यह इलाका मुस्लिम बाहुल्य है. क्षिप्रा ने ये भी कहा है कि अगर ये संपत्ति उनके परिवार को वापस मिलती है तो वो सभी लोग इसकी देखभाल करेंगे.

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